अश्विनी कुमार

शोक क्षणिक है, साथी मेरे!
हिय छोटा तुम मत करना;
अंतर-घट के राज अगिनत,
हिय न उलझन रत करना।

पथ ही बनती पहचान हमारी,
फिर पथ से कलह क्यों करना;
ह्रदय-कलश अविनाशी घट है
किंचित मंथन से मत डरना।

Popular Post

Powered by Blogger.

- Copyright © 2013 हृदय-कलश -Metrominimalist- Powered by Blogger - Designed by Johanes Djogan -