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हृदय-कलश
अश्विनी कुमार
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अंतर-मंथन
अंतर-मंथन
अश्विनी कुमार
शोक क्षणिक है, साथी मेरे!
हिय छोटा तुम मत करना;
अंतर-घट के राज अगिनत,
हिय न उलझन रत करना।
पथ ही बनती पहचान हमारी,
फिर पथ से कलह क्यों करना;
ह्रदय-कलश अविनाशी घट है
किंचित मंथन से मत डरना।
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