अश्विनी कुमार








थी याराना की तमन्ना और उल्फत की उम्मीद,
पर वक़्त से शिकवा है जो न हुआ मुफीद ।

इन्सान आरजू में कब तलक जिन्दा रहे,
रहम-ए- खुदा मिले तो, हो यार के दीद।

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